★ 'शिवरात्रि' का क्या अभिप्राय है ?


  'शिवरात्रि' का क्या अभिप्राय है ?



शिवरात्रि अर्थात् भगवान शिव जी की रात्रि । पौराणि कथाओं के अनुसार इसी तिथि की रात्रि को भगवान शिवजी का विवाह पार्वती जी से हुआ था । यह भगवान शिव जी की आराधना की रात्रि है। जो फाल्गुन कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी (चौदस) को मनायी जाती है ।

अन्य देवताओं का पूजन-यजन दिन में होता है तो शिव जी का पूजन रात्रि में क्यों यह विचार आपके मन में उत्पन्न हो सकता है । भगवान शिव तमोगुण प्रधान संहार के देवता है अतः तमोमयी रात्रि से उनका ज्यादा स्नेह है। रात्रि संहारकाल का प्रतिनिधित्व करती है।

कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी में रात्रिकालीन प्रकाश का स्रोत चन्द्रमा भी पूर्ण रूप से क्षीण होता है। जीवों के अन्दर तामसी प्रवृत्तियां कृष्ण पक्ष की रात में बढ़ जाती है।

जैसे पानी आने से पहले पुल बांधा जाता है उसी प्रकार चन्द्र क्षय तीज आने से पहले उन तामसी प्रवृत्तियों के शमन (निवारण), हेतु भगवान आशुतोष (शिव) की आराधना का विधान शास्त्रकारों ने बनाया । यहीं रहस्य है । संहार के पश्चात् नई सृष्टि अनिवार्य हैं अर्थात् संहार के बाद पुनः सृष्टि होती है ।

आप देखते हैं कि फाल्गुन मास में सभी पेड़-पौधों (लगभग सभी) के पत्ते झड़ जाते हैं उसके बाद ही नई पत्तियां निकलती है। इसे सृष्टि का नया स्वरूप जानों ।

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